स्काउट और गाइड

राइजिंग स्टार सीनियर सेकेंडरी स्कूल, चम्बा के छात्र स्काउट और गाइड में बहुत उत्सुकता से से भाग लेते हैं।

नवयुवकों के लिए यह एक स्वयंसेवी, गैर सरकारी, शैक्षिक आन्दोलन है। जो किसी मूल जाति और वंश के भेदभाव से मुक्त प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुला है। यह 1907 में संस्थापक लार्ड बेडेन पॉवेल द्वारा संकल्पित किये गये लक्ष्य, सिद्धान्त तथा पद्धित के अनुरूप है।

उद्देश्यः

  • यह देश- भक्त, बहादुर, फुर्तीले, सक्रिय, बुद्धिमान, अग्रगामी तथा दूरदर्शी नागरिकों का निर्माण करने वाली संस्था है।
  • उत्त्तम नागरिकता की पाठशाला है।
  • खाली समय का सदुपयोग है।
  • एक शैक्षिक आन्दोलन है।
  • एक स्वैच्छिक अशासकीय संगठन है,
  • एक खेल, किन्तु शिक्षाप्रद खेल है।
  • प्रसन्नतादायक वातावरण है।
  • नेतृत्व का प्रशिक्षण है।
  • प्रकृति से तादात्म का सु- अवसर है।
  • मनोवैज्ञानिक प्रगतिशील प्रशिक्षण है।
  • पाठ्य- सहगामी सर्वोतम कार्यक्रम है।
  • व्यक्ति का चारित्रिक विकास, शारिरिक विकास और बौद्धिक विकास कर, समाज- सेवा और ईश्वर के प्रति कर्तव्य- बोध कराने वाली
  • भाई- चारा तथा विश्व- बंधुत्व का पाठ पढ़ानेवाली संस्था है।


स्काउट गाइड का इतिहास

स्काउट गाइड का इतिहास सेना में ‘स्काउट’ शब्द का अर्थ होता है ‘गुप्तचर’। आज भी सेना में स्काउट होते हैं। स्काउटिंग को सेना के सीमित क्षेत्र से खींचकर जनसाधारण के बालक- बालिकाओं तक लाने का एक मात्र श्रेय लार्ड बेडेन पावेल को है। जिन्हें बाद में बी.पी. के नाम से भी सम्बोधित किया जाने लगा था। लार्ड पावेल जिनका पूरा नाम राबर्ट स्टिफेन्सन स्मिथ बेडेन पावेल था, का जन्म 22 फरवरी, 1857 को लन्दन में रेवरेण्ड प्रोफेसर हरबर्ट जार्ज बेडेन पावेल के घर हुआ था। बी.पी. अभी तीन वर्ष के ही थे कि इनके पिता का स्वर्गवास हो गया। इनकी माताश्री श्रीमती हेनरेटा ग्रेस स्मिथ ने अत्यंत कुशलता एवं साहस से परिवार की देखभाल की।

सन् 1900 में दक्षिण अफ्रीका में ‘बोर युद्ध’ के समय इन्हें छोटे- छोटे बालकों की असीम शक्ति, अदम्य साहस, कर्तव्यपरायणता, कार्यनिष्ठा आदि गुणों का परिचय मिला। इससे लार्ड पावेल को विश्वास हो गया कि बालक युद्ध एवं शान्तिकाल, दोनों में, संसार को कितना लाभ पहुँचा सकते हैं।

बालकों में छिपी असीम शक्ति और उनके प्रति अपने विश्वास को रचनात्मक रुप देने के लिए बी.पी. ने सन् 1907 में ‘ब्राउन सी’ नामक टापू पर मात्र बीस बालकों के साथ अपना प्रथम शिविर लगाया। इसकी सफलता से प्रेरित होकर बेडेन पावेल ने इस दिशा में और अधिक उत्साह से काम करना शुरु कर दिया। भारत में स्काउटिंग- गाइडिंग

लार्ड बेडेन पावेल की पुस्तक ‘स्काउटिंग फॉर ब्वॉयज’ का प्रभाव विश्व के अन्य देशों के साथ- साथ भारत पर भी पड़ा। जिसके फलस्वरुप भारत में भी स्काउटिंग शुरु करने का प्रयास किया जाने लगा। सन् 1910 में भारत में स्काउटिंग के आरम्भ होने पर इसमें केवल अंग्रेज तथा एंग्लो इण्डियन बच्चों को ही प्रवेश दिया जाता था। सन् 1913 में पं. श्रीराम वाजपेयी ने शाहजहाँपुर में भारतीय बचचों के लिए स्काउटों का एक स्वतंत्र दल खोला। सन् 1913 के उपरान्त एक के बाद एक दल खुलने लगे। सन् 1916 में पूना में लड़कियों को भी पहली बार गर्ल स्काउट (गाइड) बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

सन् 1916 में ही डाँ. एनीबेसेंट ने मद्रास में ‘इण्डियन ब्वॉयज स्काउट एसोसिएशन’ की नींव रखी। सन् 1917 में पण्डित मदन मोहन मालवीय ने पं. हृदयनाथ कुँजरू और पं. श्रीराम वाजपेयी के सहयोग से इलाहाबाद में ‘अखिल भारतीय सेवा समिति ब्वॉयज स्काउट एसोसिएशन’ की स्थापना कर दी। सन् 1920 तक तो भारत में सकाउटिंग के कई स्वतंत्र संगठन बन चुके थे।